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ज्यादा फोटो का लोड आपका स्मार्टफोन उठा सकता है, पर दिमाग नहीं

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Shikha Patel द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/11/2020

    ज्यादा फोटो का लोड आपका स्मार्टफोन उठा सकता है, पर दिमाग नहीं

    कई लोगों को अपने स्मार्टफोन से सेल्फीज और फोटो लेने की आदत होती है। शोध बताते हैं कि बहुत सारी फोटो क्लिक करना आपकी मैमोरी को बिगाड़ सकता है। हम यह सोचकर फोटोज क्लिक करते हैं कि हम यादों को स्टोर कर कर रख रहे हैं जबकि असल में हम उस पल को जीने से चूक जाते हैं। इस आदत का ज्यादा असर दिमाग पर भी पड़ता है।

    आज के समय में अधिकतर लोगों की आदत होती है कि सनसेट दिख गया तो उसकी तस्वीर खींच ली, रेस्टोरेंट गए तो वहां फैंसी दिखने वाली डिश की फोटो कैप्चर कर ली।

    यह स्पष्ट है कि हम अपनी यादों को संजोने के लिए पिक्चर्स क्लिक करते हैं। हालांकि, फोटोग्राफी हेल्थ इफेक्ट्स के बारे में अध्ययन कहते हैं कि मन को शांत रखने में फोटोग्राफी एक प्रभावी तरीका है लेकिन, फोटोग्राफी का दिमाग पर बुरा असर तब होने लग जाता है, जब हम जरूरत से ज्यादा फोटोज क्लिक करने लगते हैं।

    विश्व फोटोग्राफी दिवस (19 अगस्त) पर “हैलो स्वास्थ्य’ के इस आर्टिकल में जानते हैं कि ज्यादा फोटोग्राफी का दिमाग पर कैसा असर पड़ता है और फोटोग्राफी को लेकर आपको खुद को कितना कंट्रोल कर के रखना चाहिए।

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    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर

    स्मार्टफोन के जमाने में हर दूसरा इंसान फोटोग्राफर बन गया है लेकिन, क्या आपको पता है कि जरूरत से ज्यादा तस्वीरें खींचना आपके दिमाग पर बुरा असर डाल सकता है। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे जरूरत से ज्यादा फोटो खींचना आपके दिमाग की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

    फोटोग्राफी हेल्थ इफेक्ट्स : ज्यादा फोटो लेना याद रखने की क्षमता को बिगाड़ सकता है

    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर

    अगर आपको लगता होगा कि किसी जगह (म्यूजियम, गार्डन, हिस्टॉरिकल प्लेस आदि) जाने पर ली गई तस्वीरों से आपको उसे याद रखने में मदद मिलेगी, तो ऐसा जरूरी नहीं है।

    संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक (cognitive psychologist) लिंडा ए हेंकेल, फेयरफील्ड यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार, लोग इमेज क्लिक करते समय “फोटो-टेकिंग-इम्पेयरमेंट इफेक्ट (photo-taking-impairment effect)” का अनुभव करते हैं। मतलब कि वे ऑब्जेक्ट्स को ऑब्जर्व किए बिना केवल पिक्चर्स क्लिक करते हैं।

    इसकी वजह से उन्हें बाद में ऑब्जेक्ट के बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं रहता है। रिसर्चर ने अपने शोध में पाया कि जिन लोगों ने ऑब्जेक्ट को क्लिक करने की बजाय सिर्फ उसको ऑब्जर्व किया था, उन्हें बाद में भी ऑब्जेक्ट्स के बारे में सारी डिटेल्ड इन्फॉर्मेशन याद थी। अधिक फोटो लेना वास्तव में घटना के विवरणों को याद करने की आपकी क्षमता को बिगाड़ सकता है।

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    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर : बच्चों को बचपन की यादों को फॉर्म और प्रोसेस करने में परेशानी

    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर

    मैरीन गैरी (फेलो, एसोसिएशन फॉर साइकोलॉजिकल साइंस) ने बचपन की यादों पर फोटोग्राफी के प्रभाव पर शोध किया। इस रिसर्च से पता चला कि पेरेंट्स लिविंग मोमेंट से दूर जा रहे हैं क्योंकि उनका ज्यादा ध्यान अपने बच्चे की फोटो क्लिक करने में लगा रहता है।

    ऐसा करना दोनों (पेरेंट्स और बच्चे) के लिए ही सही नहीं है। दरअसल, “माता-पिता अपने बच्चे की याददाश्त के लिए एक अर्काइविस्ट (archivist) की भूमिका निभाते हैं’। इसका मतलब है कि पेरेंट्स एक तरीके से अर्काइव की तरह काम करते हैं जहां बहुत सारी जानकारी मौजूद होती है लेकिन, ज्यादा ध्यान बच्चे की तस्वीर खींचने में लगाने की वजह से वे अपनी भूमिका निभाना भूल जाते हैं।

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    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर : एक्सपीरिएंस को याद रखने का तरीका बदला

    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर

    कई बार लोग यादों को संजोने के लिए फोटोज क्लिक करने की बजाय इसलिए पिक्चर क्लिक करते हैं ताकि उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकें और इस चक्कर में वो उस पल को जीना भूल जाते हैं। जैसे कि एक बहुत ही फेमस ऐप्प है, जहां लाखों यूजर्स मेमोरीज को रिकॉल करने के लिए फोटोज को स्टोर करते हैं।

    आज टेक्नोलॉजी के साथ डॉक्यूमेंट करने की हमारी क्षमता बदल गई है। इवेंजेलोस निफोराटोस (नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी) के एक शोधकर्ता बताते हैं कि कैसे नई तकनीक यादों को बनाने की हमारी क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

    स्मार्टफोन्स ने न केवल हमारे फोटोज लेने के तरीके को बदल दिया है बल्कि, रिकॉर्ड किए गए अनुभवों को याद रखने के तरीके को भी बदल दिया है। इसका जीता जागता उदाहरण है हमारा सोशल मीडिया। यहां लोग पिक्चर्स को अपलोड करके अपने अनुभवों को स्टोर करते हैं।

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    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर : कहीं आप न हो जाएं मेंटल डिसऑर्डर के शिकार

    फोटोज क्लिक करने के बाद नेक्स्ट स्टेप उन्हें अपने सोशल मीडिया चैनल्स पर शेयर करना है। कंप्यूटर इन ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित एक शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि ज्यादा सेल्फी लेना और उन्हें पोस्ट करना नार्सिस्टिक पर्सनालिटी डिसऑर्डर (Narcissistic Personality Disorder) के कुछ रूपों के साथ संबंधित हो सकता है।

    शोधकर्ताओं ने 470 अमेरिकी और 260 लेबनानी छात्रों पर सेल्फी पोस्टिंग बिहेवियर पर की गई स्टडी में यह बात भी कही गई कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में ज्यादा सेल्फीज शेयर करती हैं।

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    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर : मेमोरी फॉर्मिंग हो सकती है कमजोर

    मनोवैज्ञानिक मैरीन गैरी (विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंगटन, न्यूजीलैंड) का कहना है कि बहुत सी तस्वीरें लेने से लोगों की मेमोरी फॉर्मिंग का तरीका कमजोर हो जाता है। उनके प्रकाशित शोध में कहा गया है कि ज्यादा फोटोग्राफी करना हमारी यादों और अनुभवों के सब्जेक्टिव इंटरप्रिटेशन को मैनिपुलेट कर सकती है।

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    नकारात्मक भावनाएं हो सकती हैं हावी

    पर्सनैलिटी और सोशल साइकोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि आमतौर पर फोटोग्राफी आपकी सकारात्मक भावनाओं को बढाती हैं लेकिन, यह केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही संभव है।

    जब फोटो लेने वाला व्यक्ति उस पर्टिकुलर एक्टिविटी में काफी इंगेज होता है, तब उनमें पॉजिटिव फीलिंग्स बढ़ती हैं। वहीं, जो लोग सही शॉट को पकड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं, उनकी फोटोग्राफी उस पल को अनुभव करने की फीलिंग को खराब कर सकती है। इससे फोटो लेने का उनका अनुभव और बदतर बन सकता है। इससे मन में नेगेटिव फीलिंग्स बढ़ सकती हैं।

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    सेल्फ अवेयरनेस से बढ़ सकती है एंग्जायटी

    फोटोग्राफी का दिमाग पर असर

    हमें अपने बच्चों की कम तस्वीरें लेनी चाहिए लेकिन क्यों? बच्चों के लिए खुद की पिक्चर्स को स्क्रॉल करना एक ऑब्सेशन बन सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जब बच्चों की तस्वीरें ली जाती हैं तो वे अधिक आत्म-केंद्रित उत्तेजनाओं के संपर्क में आते हैं।

    हालांकि, आप थोड़ी बहुत तस्वीरें ले सकते हैं लेकिन ज्यादा फोटोज लेने पर आपके लिए दिक्कत पैदा हो सकती है। बच्चों में एक्सेसिव सेल्फ अवेयरनेस चिंता का कारण बन सकता है।

    दरअसल, फोटो खिंचवाने से आत्म-जागरूकता बढ़ती है। इसके साथ ही बच्चा खुद को आंकता (self-evaluation) है और खुद की आलोचना (self-criticism) भी करता है। नतीजन, फोटो खिंचवाना और खुद की इमेजेज को स्क्रॉल करना उसकी मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर सकता है।

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    फोटोग्राफी हेल्थ इफेक्ट्स : फोटो खींचने के फायदे

    अगर तस्वीरें एक लिमिट में किसी अच्छे उद्देश्य के साथ क्लिक की जाएं तो फोटोग्राफी का दिमाग पर अच्छा असर पड़ सकता है। इसके कई लाभ भी मिल सकते हैं जैसे –

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    फोटो लिमिट है जरूरी

    अब आप सोच रहे होंगे कि हमें कितनी फोटो लेनी चाहिए? एक्सपर्ट्स यही सुझाव देते हैं कि प्रोफेशनल फोटोग्राफी से इतर कम से कम तस्वीरें ही लेनी चाहिए। अगर आप छुट्टी पर हैं और कुछ खूबसूरत साइट का आनंद ले रहे हैं, तो दो-चार फोटोज लें और कैमरे को दूर रख दें और उस मोमेंट को एंजॉय करें।

    बाद में उन फोटोज को ऑर्गनाइज करें और अन्य लोगों के साथ बैठकर अपनी मेमोरीज को शेयर करें। इससे यादों को जीवित रखने में मदद मिलेगी।

    डिस्क्लेमर

    हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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