भारत में कृत्रिम अंगों की दुनिया में नया आविष्कार है ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी
के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
Surender aggarwal द्वारा लिखित · अपडेटेड 03/06/2021
हमारे शरीर का हर एक अंग जीवन को व्यवस्थित और सुचारू रूप से जीने के लिए बहुत जरूरी है। इन शारीरिक अंगों में हाथ और पैरों की महत्वता और भी अधिक है। किसी भी दैनिक कार्य को करने के लिए आपको हाथ या पैर की मदद लेनी ही पड़ती है। लेकिन, कई कारणों या हादसों की वजह से कुछ लोगों के हाथ या पैर को सर्जरी की मदद से हटाना पड़ता है, जिसे मेडिकल भाषा में एंप्यूटेशन कहा जाता है। इसके बाद किसी भी व्यक्ति की जिंदगी काफी मुश्किल हो जाती है। लेकिन, अब कृत्रिम अंग बनाने वाली जर्मनी की एक बहुप्रतिष्ठित कंपनी ऑटोबोक (Ottobock) ने भारतीय ऑर्थोपेडिक सर्जन के साथ हाथ मिलाकर ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी (Osseointegration technology) को भारतीय जनता के सामने लाई है। इस तकनीक के बाद किसी भी दिव्यांग की जिंदगी कृत्रिम अंगों के सहारे बिल्कुल एक आम व्यक्ति की तरह चलने लगेगी। आइए, जानते हैं कि ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी आखिर क्या है और यह कैसे काम करती है।
ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी (Osseointegration technology) से पहले जान लेते हैं ये जानकारी
ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी से पहले हमें यह जानना जरूरी है, कि आखिर किसी व्यक्ति के हाथ या पैर खोने की स्थिति क्यों आती है। दरअसल, कभी एक्सीडेंट या कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण व्यक्ति का पैर या हाथ काम करना बंद कर देता है या फिर कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि हाथ या पैर में संक्रमण फैलने लगता है। जिस वजह से यह दूसरे अंगों तक न पहुंचे, इसलिए डॉक्टर अंग को शरीर से अलग कर देते हैं। आइए, ऐसी ही कुछ प्रमुख स्थितियों पर नजर डालते हैं।
गंभीर इंजुरी (गंभीर जलने या फिर किसी वाहन से एक्सीडेंट)
ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी बायोनिक प्रोस्थेटिक डिवाइस की कार्यक्षमता को बढ़ाने में काफी मददगार है। इसलिए, पहले हमें बायोनिक प्रोस्थेटिक डिवाइस के बारे में जानने की जरूरत है। दरअसल, बायोनिक दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला बायो (Bio) और दूसरा निक (Nics)। बायो का मतलब जिंदगी होता है और निक को इलेक्ट्रॉनिक से लिया गया है। इन दोनों से मिलकर बने शब्द का मतलब है कि, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की मदद से जिंदगी को आम बनाना। प्रोस्थेटिक का मतलब आर्टिफिशियल होता है। प्रोस्थेटिक बायोनिक डिवाइस को किसी व्यक्ति के हाथ, पैर, ब्रेस्ट, दिल आदि के कार्य न कर पाने की स्थिति में व्यक्ति के शरीर में इंस्टॉल किया जाता है। यह हाईटेक डिवाइस होते हैं, जो व्यक्ति की जिंदगी को काफी हद तक पहले जैसा करने में मदद करते हैं।
भारतीय ओर्थोपेडिक सर्जन डॉ. आदित्य खेमका और बायोनिक डिवाइस की दुनिया की बहुप्रतिष्ठित कंपनी ऑटोबोक ने मिलकर भारत में ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी को सामने लाए हैं। इनका कहना है कि, यह तकनीक एक मील का पत्थर साबित होगी, जो कि भारत में दिव्यांगों की सोशल और इकोनोमिक लाइफ को फिर से सक्रिय कर देगी। भारत में प्रति हजार जनसंख्या पर 0.62 प्रतिशत दिव्यांग हैं।इसके अलावा, हाल ही में लगाए अनुमान के मुताबिक, भारत में एंप्यूटेशन सर्जरी प्राप्त किए हुए करीब 10 लाख लोग हैं। इनमें से युवाओं की संख्या भी अधिक है, जिनकी जिंदगी एंप्यूटेशन सर्जरी के बाद काफी बदल गई है। लेकिन, ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी एक ऐसी तकनीक है, जिसमें दिव्यांग की हड्डी में एक टाइटेनियम इंप्लांट के जरिए प्रोस्थेटिक बायोनिक डिवाइस के साथ स्केलेटल कनेक्शन बनाया जाता है। इससे एक इंटरफेस तैयार होता है, जो कि हड्डी को प्रोस्थेटिक डिवाइस से सीधा जोड़ता है। जिस वजह से कोई बायोनिक लेग या हैंड की रॉड के अपर पार्ट या हाइड्रोलिक्स के आसपास हड्डी या मसल्स की ग्रोथ होने लगती है और इसमें मौजूद माइक्रोप्रोसेसर व्यक्ति द्वारा लोअर लिंब को ज्यादा आराम और सुचारू रूप से, बल्कि प्राकृतिक तरह नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
ऑटोबोक के एशिया पेसिफिक क्षेत्र के मेनेजिंग डाइरेक्टर और रीजनल प्रेसिडेंट, बर्नार्ड ओ’कीफे ने कहा कि, “एंप्यूटेशन केयर के क्षेत्र में ऑटोबोक नए कीर्तीमान स्थापित कर रहा है।लेकिन, इसके साथ यह भी ध्यान रखें कि अगर किसी अनुभवहीन या अकुशल हेल्थकेयर प्रोफेशनल से आप ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी की सेवा लेते हैं, तो यह इंप्लांट पर और व्यक्ति की जिंदगी पर बुरा असर डाल सकता है। इसलिए, किसी अनुभवी और कुशल हेल्थकेयर प्रोफेशनल के द्वारा ही इस तकनीक को अपनाएं।”
इवेंट की अध्यक्षता करने वाले डॉ. आदित्य खेमका, जो कि एक ऑर्थोपेडिक सर्जन और ओसियोइंटीग्रेशन तकनीक में विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि, “एंप्यूटेशन रीकंस्ट्रक्शन करने की प्रक्रिया में ओसियोइंटीग्रेशन एक नया आयाम है। प्रोस्थेटिक डिवाइस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा या उसका ‘बोटलनेक’ एक सॉकेट होता है। इसलिए, अगर प्रोस्थेटिक कंपोनेट सबसे बेहतर भी है, लेकिन सॉकेट खराब है, तो उसका असर बुरा हो सकता है और पूर्ण कार्य नहीं कर पाता। लेकिन, ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी सॉकेट इश्यू की आशंका को खत्म कर व्यक्ति को असहजता और स्किन ब्रेक-डाउन की संभावना से छुटकारा देता है। इसके अलावा, यह अन्य कई फायदे देता है, जैसे- प्रोस्थेटिक डिवाइस को जल्द ही उतारना और पहनना और डिवाइस का जमीन पर टिका होने का अहसास मिलना। जिससे व्यक्ति ज्यादा सहज और बेहतर ढंग से चल-फिर सकता है।”
एंप्यूटेशन के बाद रिकवरी
किसी व्यक्ति को अगर एंप्यूटेशन रिमूव का सामना करना पड़ता है, जो उसे रिकवरी करने के लिए निम्नलिखित तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। एंप्यूटेशन के बाद की रिकवरी उसकी प्रक्रिया और एनेस्थिसिया के ऊपर निर्भर करता है। अगर, किसी व्यक्ति को एंप्यूटेशन के बाद दर्द रहता है, डॉक्टर उसे कुछ दर्दनिवारक दवाइयों के सेवन की सलाह भी दे सकता है। लेकिन, फिर भी कुछ फिजीकल थेरिपी, जेंटल शुरुआत, स्ट्रेंचिंग एक्सरसाइज आदि आम होते हैं। जैसे-