फैक्टर VII डेफिसिएंशी के लक्षण क्या हैं? (Factor VII deficiency Symptoms)
बता दें कि VII डेफिसिएंशी सिंड्रोम (VII deficiency Syndrome) दो प्रकार का होता है। टाइप 1 में फैक्टर VII ब्लड में उपस्थित होता है, लेकिन इसका लेवल लो होता है। वहीं टाइप 2 में फैक्टर VII प्रेजेंट होता है, लेकिन ठीक से काम नहीं करता। रक्त में मौजूद फैक्टर VII की मात्रा और उसकी गतिविधि के आधार पर लक्षणों की गंभीरता माइल्ड से सीवियर तक होती है। जिन बच्चों में फैक्टर VII कम होता है या बिलकुल नहीं होता उनमें लक्षण शीघ्र ही दिखाई देने लगते हैं। जबकि कुछ लोग जिनमें कुछ VII फैक्टर फंक्शनिंग होता है उनमें जब तक कोई सर्जरी या इंजरी नहीं होती लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसके लक्षण एक ही फैमिली के लोगों में अलग-अलग हो सकते हैं। कई बार लक्षण बहुत माइल्ड होते हैं जिनसे किसी प्रकार की कोई पेरशानी नहीं होती।
सीवियर डेफिसिएंशी का सामना कर रहे लोगों में सर्जरी या इंजरी के बाद लंबे समय तक ब्लीडिंग होती है। जिसका कारण ब्लड में VII फैक्टर की कमी है जिससे क्लॉटिंग प्रॉसेस कंप्लीट नहीं हो पाती। जैसे कि ऊपर पहले ही हम बता चुके हैं कि कई बार ब्लीडिंग स्किन के अंदर नहीं बाहर भी होती है। जिसमें जॉइंट में ब्लीडिंग शामिल है।
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फैक्टर VII डेफिसिएंशी (Factor VII deficiency Diagnosis) के बारे में पता कैसे चलता है?
फैक्टर VII डेफिसिएंशी के बारे में बर्थ के पहले पता चल सकता है यदि फैमिली हिस्ट्री हो तो। ऐसा होने पर प्रेग्नेंसी के 15-20 वें हफ्ते में टेस्ट करवाया जाता है।
वहीं शिशुओं के जन्म के बाद ब्रेन के अंदर ब्लीडिंग (इंट्राक्रैनियल हैमरेज) या गर्भनाल काटने के बाद अत्यधिक ब्लीडिंग या खतना जैसी सर्जरी के बाद होने वाली लगातार ब्लीडिंग क्लॉटिंग डिसऑर्डर (Bleeding clotting disorder) के प्रति इशारा करती है।
बड़े बच्चों और व्यस्कों में इस ब्लड डिसऑर्डर का पता चोट लगने या ऑपरेशन या इंजरी के दौरान होने वाली ब्लीडिंग से लगता है। फैक्टर VII डेफिसिएंशी को मासिक धर्म और डिलिवरी की वजह से पुरुषों की तलुना में महिलाओं में जल्दी डायग्नोस कर लिया जाता है। फैक्टर VII डेफिसिएंशी (VII deficiency) के बारे में ब्लड टेस्ट के द्वारा भी पता किया जा सकता है। टेस्ट में इस बात का पता लगाया जाता है कि ब्लड का थक्का बनने में कितना समय लग रहा है। इसके बाद आगे की जांच की जाती है।
डॉक्टर ब्लड में फैक्टर VII के लेवल के बारे में भी पता करने की कोशिश करेंगे। इसके साथ ही वे जीन म्यूटेशन (Gene mutation) को भी पहचानने की कोशिश करेंगे। जिससे आगे की पीढ़ी को इस बीमारी से बचाया जा सके। इमैजिंग स्केन जैसे कि एमआरआई, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड स्कैन्स की मदद से इंटरनल ब्लीडिंग के बारे में जानकारी प्राप्त की जाएगी।
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